ग़ाज़ा में इसराइल के पूर्ण स्तर पर किए गए आक्रमण के पाँच महीने बाद, अब तक 30 हज़ार फ़लस्तीनियों की जान गई है, बड़ी संख्या में बच्चों की भूख की वजह से मौत हुई है और पाँच लाख से अधिक लोगों पर भुखमरी का जोखिम है.
इसराइल की भीषण बमबारी और जीवनरक्षक सामान की आपूर्ति पर सख़्तियों के बीच, संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों ज़रूरतमन्द आबादी तक राहत पहुँचाने के लिए प्रयासरत हैं.
फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) का मानना है कि राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी और इसराइली सैन्य बलों द्वारा सुरक्षा आश्वासन ना होने के कारण ग़ाज़ा में राहत आपूर्ति में 50 फ़ीसदी की कमी आई है, जबकि नागरिक व्यवस्था ढह रही है.
हर दिन गहराते संकट के बीच, समाचार माध्यमों के अनुसार कुछ देशों ने इसराइली पाबन्दियों को दरकिनार करते हुए हवाई मार्ग से भोजन के पैकेट गिराए हैं. वहीं, अमेरिका द्वारा ग़ाज़ा में एक अस्थाई बन्दरगाह बनाए जाने की योजना है, ताकि राहत आपूर्ति सुनिश्चित की जा सके.
दो वर्षीय लीन की बाँह के आकार को मापा जा रहा है, जोकि अचानक हुए गम्भीर कुपोषण, वज़न घटने और माँसपेशियों के क्षीण होने को दर्शाता है. संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनीसेफ़) के हस्तक्षेप के बाद, फ़रवरी महीने में लीन को अल अवदा अस्पताल में उपचार व विशेषीकृत देखभाल व्यवस्था के लिए भेजा गया था.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि बमबारी में किसी तरह जीवित बच जाने वाले बच्चों के लिए एक अकाल को झेल पाना शायद सम्भव ना हो. ग़ाज़ा में हर छह में से एक बच्चा फ़िलहाल ख़तरनाक कुपोषण का शिकार है.
विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) को उत्तरी ग़ाज़ा में सुरक्षा व्यवस्था के अभाव में जीवनरक्षक सहायता प्रयासों को रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा. WFP के 14 ट्रकों के एक क़ाफ़िले ने फिर 5 मार्च को मदद पहुँचाने की कोशिश की, मगर इसराइली सुरक्षा बलों ने उसे वापिस भेज दिया.
ग़ाज़ा में पहुँचने वाली सहायता का स्तर फ़िलहाल वहाँ विशाल ज़रूरतमन्द आबादी की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है. स्थानीय लोग अक्टूबर महीने से ही पूर्ण घेराबन्दी का सामना कर रहे हैं. इसराइल ने बिजली व जल आपूर्ति काट दी है और ग़ाज़ा पट्टी में राहत क़ाफ़िलों के प्रवेश पर सख़्ती है.
विश्व खाद्य कार्यक्रम, ‘फ़्रेंड्स किचन’ समेत अपने छह साझेदार संगठनों के साथ मिलकर ग़ाज़ा पट्टी में परिवारों के लिए भोजन की व्यवस्था कर रहा है, जहाँ 22 लाख में से क़रीब 85 फ़ीसदी आबादी विस्थापन का शिकार हुई है.