सुरक्षा परिषद में किसी प्रस्ताव के पारित होने तक का सफ़र
सुरक्षा परिषद में कोई प्रस्ताव किस तरह से पारित होता है? एक नज़र, इस पूरी प्रक्रिया पर...
15 सदस्य देशों वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का दायित्व, प्रस्तावों और निर्णयों के ज़रिए अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के लिए उत्पन्न होने वाले ख़तरों से निपटना और ज़रूरी क़दम उठाना है.
ये प्रस्ताव यूएन के 193 सदस्य देशों के लिए क़ानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं, मगर, कभी-कभी ऐसे दस्तावेज़ का मसौदा पारित हो पाना अनेक चुनौतियों से घिर जाता है.
अक्टूबर 2023 में, ग़ाज़ा युद्ध शुरू होने के बाद से अब तक, सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने अनेक प्रस्तावों के मसौदे तैयार किए हैं, उन पर गहन बातचीत भी हुई है, और फिर कुछ को पारित भी किया गया है.
लेकिन ऐसे भी कई मसौदे और संशोधन सामने आए, जोकि सुरक्षा परिषद में पर्याप्त वोट (9 मत) ना मिलने की वजह से ख़ारिज हो गए या फिर उन्हें वीटो कर दिया गया.
संयुक्त राष्ट्र के पाँच स्थाई सदस्य देशों – चीन, फ़्राँस, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका - के पास वीटो करने का विशेष अधिकार है, जिनके ज़रिये किसी भी प्रस्ताव को रोका जा सकता है.
कभी-कभार, प्रस्ताव में कुछ शब्द, क्रिया या फिर विशेषण की वजह से ये प्रक्रिया ठप हो जाती है, जिसके बाद सदस्य देश अपने रुख़ को मनवाने के लिए सौदेबाज़ी में जुटे रहते हैं.
उदाहरणस्वरूप, ग़ाज़ा पट्टी के मुद्दे पर कुछ ऐसे सुझाव आए, जिनमें ‘युद्धविराम’ (ceasefire) का उल्लेख किया गया था, जबकि अन्य ‘शत्रुतापूर्ण बर्ताव’ (cessation of hostilities) पर विराम का इस्तेमाल चाहते थे.
और फिर, कभी-कभी सुरक्षा परिषद में सहमति नहीं बन पाती है.
जब भी किसी स्थाई सदस्य देश द्वारा अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल किया जाता है, तो एक नई प्रक्रिया शुरू हो जाती है, जिसे लिष्टेनटाइन ने 2022 में पेश किया था.
इसके तहत, वीटो शक्ति का इस्तेमाल किए जाने के बाद, यूएन महासभा के अध्यक्ष, उस विवादित मुद्दे पर महासभा का आपात विशेष सत्र या यूएन सदस्यों की औपचारिक बैठक बुला सकते हैं.
एक अन्य रास्ता, ‘शान्ति के लिए एकजुट होना’ (Uniting for Peace) नामक प्रस्ताव के ज़रिये भी है, जिसके अनुसार, अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा बनाए रखने के अपने दायित्व में यदि सुरक्षा परिषद विफल हो जाए, तो महासभा द्वारा एक आपात विशेष सत्र बुलाया जा सकता है.
अब तक, 11 आपात विशेष सत्रों को बुलाया गया है. ‘Uniting for Peace’ नामक प्रस्ताव को 1951 से 2022 के दौरान 13 बार लागू किया गया है. सुरक्षा परिषद ने आठ बार और महासभा ने पाँच बार इस व्यवस्था को अपनाया है, जिनमें से फिर 11 मामलों में आपात विशेष सत्र बुलाया गया.
वर्ष 1946 में, सुरक्षा परिषद ने एक यूएन सैन्य स्टाफ़ समिति को स्थापित करने के लिए अपना पहला प्रस्ताव पारित किया था.
उसके बाद से अब तक, प्रस्तावों का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया में मोटे तौर पर कोई बदलाव नहीं आया है.
हमने, किसी प्रस्ताव के विचार से लेकर उसे 193 सदस्य देशों के लिए क़ानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज़ बनाने तक की यात्रा पर आपके लिए जानकारी जुटाई है.
पहला क़दम
इस प्रक्रिया में सबसे पहले किसी भी प्रस्ताव का आरम्भिक मसौदा तैयार किया जाता है, जिसे एक या कई सदस्य देशों द्वारा सह-प्रायोजित किया जा सकता है.
ग़ाज़ा जैसे किसी संकट पर प्रस्ताव का शुरुआती मसौदा तैयार करना एक व्यापक प्रक्रिया है. यूएन मुख्यालय में सुरक्षा परिषद मामलों के प्रभाग में वरिष्ठ अधिकारी निकोलाई गाल्किन के अनुसार, इस प्रक्रिया में परिषद के 15 सदस्यों से इतर भी अन्य देश शामिल हो सकते हैं.
संयुक्त राष्ट्र में किसी सदस्य देश के स्थाई मिशन में सेवारत काउंसलर द्वारा इस दिशा में पहला क़दम उठाया जाता है, जिन्हें इन मामलों में विशेषज्ञता होती है.
वे क्षेत्रीय समूहों, सम्बद्ध देश और अन्य अहम हितधारकों के अलावा सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों के प्रतिनिधिमंडल के साथ विचार-विमर्श करते हैं.
उनका लक्ष्य किसी हिंसक टकराव का अन्त करने, शान्तिरक्षा मिशन को स्वीकृति देने, प्रतिबन्ध थोपने या किसी मामले को अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय को सौंपने जैसे क़दमों के लिए सर्वसम्मति से या फिर बहुमत से किसी प्रस्ताव को पारित कराना है.
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत ये सभी उपाय, सुरक्षा परिषद के लिए तयशुदा दायित्वों के अनुरूप हैं. इस पड़ाव पर, मसौदे को तैयार या प्रायोजित करने वाले देश, ज़्यादा से ज़्यादा आवाज़ों को एक साथ लाने का प्रयास करते हैं.
‘शून्य’ मसौदा
इसके बाद, आरम्भिक विचार को फिर प्रस्ताव के ‘शून्य मसौदे’ में बदला जाता है.
राजनैतिक मामलों के वरिष्ठ अधिकारी निकोलाई गाल्किन के अनुसार, इस समय तक यह पूर्ण रूप से मसौदा नहीं होता है, बल्कि मुख्य रूप से इसे परिषद के सदस्यों की टिप्पणी के लिए तैयार किया जाता है.
इसके बाद, उसके आधार पर प्रस्ताव के संशोधित रूप को आकार दिया जाता है.
‘शून्य मसौदा’ तैयार होने के बाद, अक्सर इसे ईमेल के ज़रिये भेजा जाता है. प्रस्ताव का मसौदा तैयार करने वाले देश द्वारा, सदस्यों से फिर सुझाव देने का अनुरोध किया जाता है, जिन्हें ईमेल, व्यक्तिगत तौर पर या फिर व्हाट्सएप सन्देश के ज़रिये एकत्र किया जाता है.
बातचीत व समझौता
इस प्रक्रिया में असहमतियाँ होती हैं. ग़ाज़ा मुद्दे पर संयुक्त अरब अमीरात ने दिसम्बर 2023 में ‘शून्य मसौदे’ को तैयार किया था. इसमें ‘युद्धविराम’ (ceasefire) के उल्लेख पर बहुत असहमति थी, जोकि ख़बरों में बना रहा.
कुछ देश इस के पक्ष में थे जबकि अन्य प्रतिनिधिमंडल ने इस शब्द को प्रस्ताव में शामिल किए जाने का विरोध किया.
आम तौर पर, बातचीत के ज़रिये आपसी मतभेदों को दूर करने की कोशिश की जाती है. ये यूएन मुख्यालय परिसर में नहीं होती हैं. कभी-कभार, ‘अनौपचारिक’ चर्चा के लिए किसी कक्ष को आरक्षित कराया जाता है, जोकि सुरक्षा परिषद के चैम्बर से कुछ ही क़दम दूर है.
यह भी सम्भव है कि किसी प्रस्ताव के मसौदे को न्यूयॉर्क के बजाय, सदस्य देशों द्वारा उनकी राजधानी में तैयार कराया जाए.
नीली स्याही से क्या लिखा जाता है?
एक या कई दौर की चर्चा या बातचीत के बाद, सदस्य देश द्वारा अन्तिम मसौदे को अन्य सदस्यों के साथ साझा किया जाता है. संयुक्त अरब अमीरात के मामले में, ग़ाज़ा पर प्रस्ताव के मसौदे को सुरक्षा परिषद से इतर अन्य यूएन सदस्यों के लिए भी भेजा गया था, जोकि कभी-कभी किया जाता है.
24 घंटों के भीतर, 97 सदस्य देशों ने इस सह-प्रायोजित कर दिया था.
इस पड़ाव पर, संशोधित मसौदे को एक दस्तावेज़ संख्या दी जाती है और लिखित विषय वस्तु को उचित प्रारूप में तैयार किया जाता है.
फिर उसे नीली स्याही में प्रकाशित करके परिषद के सदस्यों को ईमेल किया जाता है.
कोविड-19 महामारी से पहले, प्रस्तावों के मसौदों को नीली स्याही में छापा जाता था और फिर परिषद के हर सदस्य की सीट पर, और चैम्बर में दस्तावेज़ काउंटर पर वितरित किया जाता था.
पर्यावरण का ध्यान रखते हुए, इन मसौदों को अब छापने के बजाय, सदस्य देशों को ईमेल किया जाता है, हालांकि उन्हें नीली स्याही में ही लिखा जाता है.
लेकिन नीली स्याही ही क्यों?
इसकी वजह दशकों पुरानी एक फ़ोटोकॉपी मशीन में छिपी हुई है, जोकि सुरक्षा परिषद कार्यालय के एक कोने में रखी हुई थी.
इस मशीन से 15 सदस्य देशों के लिए इन मसौदों को छापा जाता था, और तब केवल नीली स्याही ही उपलब्ध थी.
एक बार, नीली स्याही में प्रकाशित होना यह संकेत होता था कि सुरक्षा परिषद अब क़दम लेने के लिए तैयार है, और फिर अक्सर 24 घंटों के भीतर बैठक भी बुला ली जाती है.
वोट और वीटो
सुरक्षा परिषद की एक औपचारिक, खुली बैठक में, सदस्य देश, सुरक्षा परिषद कक्ष में घोड़े की नाल की मेज़ के इर्दगिर्द एकत्र होते हैं. सुरक्षा परिषद की मासिक अध्यक्षता सम्भालने वाले देश द्वारा सत्र शुरू करने के बाद मतदान का आग्रह किया जाता है.
कुछ सदस्य अपना वोट देने से पहले कुछ वक्तव्य पेश कर सकते हैं, जोकि उनके प्रतिनिधिमंडल के रुख़ या आपत्ति को ज़ाहिर करता है. कई बार तो उसी समय प्रस्ताव के मसौदे के लिए ही संशोधन प्रस्तुत कर दिए जाते हैं.
और फिर, नतीजे का समय आता है.
“जो भी इसके पक्ष में हैं, अपने हाथ उठाइए.” सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष द्वारा यह कहा जाता है, जिसके बाद, मेज़ के इर्दगिर्द बैठे प्रतिनिधि प्रस्ताव के समर्थन, या विरोध में अपना मत प्रदर्शित करते हैं. कभी-कभी सदस्य देशों द्वारा मतदान में हिस्सा नहीं लिया जाता है.
किसी प्रस्ताव को पारित होने के लिए कम से कम 9 मतों की ज़रूरत होती है, मगर तभी जब किसी स्थाई सदस्य द्वारा वीटो अधिकार का इस्तेमाल ना किया जाए.
तत्पश्चात, सुरक्षा परिषद के अध्यक्ष द्वारा वोट के नतीजों के बारे में जानकारी दी जाती है और मसौदा या तो पारित होता है या फिर उसे ख़ारिज कर दिया जाता है.
नीली से काली स्याही तक
इस प्रक्रिया में आख़िरी चरण, दस्तावेज़ के अन्तिम मसौदे को अन्य पक्षों को भेजना होता है, और इसे यूएन की छह आधिकारिक भाषाओं में भी अनुवादित किया जाता है – अरबी, चीनी, अंग्रेज़ी, फ़्रेंच, रूस और स्पेनिश. इन्हें काली स्याही में प्रकाशित किया जाता है.
पारित या ख़ारिज होने वाले सभी प्रस्तावों को संख्याबद्ध किया जाता है और फिर उन्हें यूएन की दस्तावेज़ प्रणाली का हिस्सा बनाया जाता है.
निकोलाई गाल्किन ने बताया कि ऐसे प्रयास किए जा रहे हैं कि कुछ महीनों बाद, इन प्रस्तावों के मसौदे को यूएन सुरक्षा परिषद की वैबसाइट पर ढूंढना सम्भव हो सकेगा.