ग़ाज़ा: इसराइली संसद में UNRWA-विरोधी विधेयक, एक 'ख़तरनाक परिपाटी' का संकेत
युद्धग्रस्त ग़ाज़ा पट्टी में विशाल मानवीय सहायता आवश्यकताओं व सुरक्षा चुनौतियों के मुद्दे पर बुधवार को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक बैठक हुई है. फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) के प्रमुख फ़िलिपे लज़ारिनी ने, ग़ाज़ा में बर्बरता और अमानवीयकरण पर तुरन्त विराम लगाने की पुकार लगाई है, और आगाह किया है कि इसराइल में उनके संगठन के विरुद्ध लाए गए क़ानून का मसौदा, मानवीय सहायता अभियानों के लिए एक ख़तरनाक परिपाटी तैयार कर सकता है.
अक्टूबर महीने के लिए सुरक्षा परिषद की अध्यक्षता स्विट्ज़रलैंड के पास है, जिसके प्रतिनिधि ने बुधवार को बैठक की शुरुआत की.
यूएन एजेंसी - UNRWA के महाआयुक्त फ़िलिपे लज़ारिनी ने 15 सदस्य देशों वाली परिषद में प्रतिनिधियों से कहा कि इसराइल में उनकी एजेंसी के विरोध में एक विधेयक लाया गया है, जोकि एक ख़तरनाक परिपाटी स्थापित करने का संकेत है.
उनके अनुसार इसराइली संसद ‘क्नेसेट’ में जिस क़ानून का मसौदा पेश किया गया है, उसका मक़सद UNRWA से उसके राजनयिक विशेषाधिकारों और उन्मुक्ति (immunity) को छीनना है.
शान्ति व सुरक्षा के साथ समझौता
यूएन एजेंसी महाआयुक्त ने कहा कि उनके संगठन को ढहाने की कोशिश की जा रही है, और इससे अन्य क्षेत्रों में हिंसक टकराव वाले हालात के लिए एक गम्भीर परिपाटी स्थापित होगी, जिसके बाद सरकारों द्वारा, यूएन के कामकाज को नकारने की कोशिशें की जा सकती है.
उन्होंने सचेत किया कि यदि इस क़ानून के मसौदे का विरोध करने में विफलता हाथ लगी तो, इससे विश्व भर में मानवतावादी और मानवाधिकारों की स्थिति कमज़ोर होगी.
फ़िलिपे लज़ारिनी ने सुरक्षा परिषद से कहा कि यह तय किया जाना होगा कि बहुपक्षवाद के मूल में प्रहार करने वाले इन कृत्यों को कब तक सहन किया जाएगा और अन्तरराष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा के साथ कब तक समझौता होगा.
महाआयुक्त लज़ारिनी के अनुसार, दंडमुक्ति की इस भावना का निर्णायक ढंग से जवाब दिए जाने का आग्रह किया. “या फिर हम यह स्वीकार कर सकते हैं कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद, नियम-आधारित अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था का अन्त हो रहा है.”
गहरी पीड़ा
7 अक्टूबर 2023 को इसराइल पर हमास व अन्य हथियारबन्द गुटों के आतंकी हमलों के बाद, इसराइली सेना ने ग़ाज़ा पट्टी में बड़े पैमाने पर हमले शुरू किए थे.
UNRWA प्रमुख ने कहा कि एक वर्ष तक गहरी पीड़ा झेलने के बाद, ग़ाज़ा को अब पहचाना नहीं जा सकता है. हज़ारों लोगों की जान जा चुकी है, जिनमें से बड़ी संख्या बच्चों की है.
फ़िलिपे लज़ारिनी ने सदस्य देशों के प्रतिनिधियों से कहा कि ग़ाज़ा की पुरानी सड़कों पर मलबे का समुद्र पसरा है, और यहाँ की लगभग पूरी आबादी विस्थापित हो चुकी है.
उन्होंने कहा कि इसराइली सैन्य बलों द्वारा उत्तरी हिस्से में आक्रामक कार्रवाई करना विशेष रूप से चिन्ताजनक है, और आम नागरिकों के लिए कोई स्थान सुरक्षित नहीं है. वहीं, दक्षिणी ग़ाज़ा में लोग असहनीय परिस्थितियों में जीवन गुज़ार रहे हैं, और हालात फिर से अकाल की ओर बढ़ रहे हैं.
मौजूदा हालात में बच्चों की शिक्षा के लिए संकट उपजा है - एक पूरी पीढ़ी का भविष्य खो जाने और नफ़रत व चरमपंथ के बीजारोपण होने की आशंका व्यक्त की गई है.
इसके मद्देनज़र, यूएन एजेंसी ने ग़ाज़ा में अपने जीवनरक्षक सहायता अभियान से इतर शैक्षिक कार्यक्रम फिर से शुरू किए हैं.
निरन्तर विस्थापन
मानवीय सहायता मामलों में समन्वय के लिए यूएन कार्यालय (OCHA) में निदेशक लीसा डॉटन ने कहा कि ग़ाज़ा के लिए पिछला एक वर्ष, अकल्पनीय पीड़ा की वजह रहा है. उनके अनुसार, हाल के इतिहास में कुछ ही मौक़ों पर, इस दायरे में व पैमाने पर विध्वंस व पीड़ा को देखा गया है.
वित्त पोषण व साझीदारी विभाग में निदेश लीसा डॉटन ने कहा कि ग़ाज़ा में इसराइली सेना द्वारा बेदख़ली आदेश दिए जाने के बाद लोग निरन्तर विस्थापन का शिकार हुए हैं.
उन्होंने कहा कि लोगों को जगह ख़ाली करने का आदेश देने की वजह, आम नागरिकों की रक्षा सुनिश्चित करना होती है, मगर इसके उलट यहाँ कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं बचा है.
ग़ाज़ा पट्टी में अति-आवश्यक सामान की आपूर्ति, उसके प्रवेश पर सख़्त पाबन्दियाँ हैं और इसराइली सीमा चौकियों पर सख़्ती के कारण, मानवीय सहायता मार्ग तक पहुँच में मुश्किलें पेश आ रही हैं.
जीवन को ख़तरे में डालने वाली इन पाबन्दियों से लोग सदमे में हैं, भूखे हैं, वे अपने हाथों से मलबे में अपने प्रियजन को तलाश रहे हैं. हिंसा को रोकने में अन्तरराष्ट्रीय समुदाय की विफलता से उनकी हताशा दिनोंदिन बढ़ रही है और बिगड़ते हालात में यह मानवीय सहायताकर्मियों पर निकल रही है.